Monday, October 19, 2015

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उत्तराखण्ड एक नजर में

उत्तराखण्ड

1 - राज्य  का  गठन  -  9  नवम्बर  2000 

2 - भारतीय गणतंत्र  का  उत्तराखंड -  27 वा  राज्य  है  

3 - हिमालयी  राज्यों क्रम  में  उत्तराखंड  -  11 वा 

4 - राज्य  का  नाम  -  31 - 12 - 2006  तक  उत्तराँचल  तत्पश्चात  1 - 1 - 2007  से  उत्तराखंड  

5 - राजधानी  -  देहरादून (अस्थ्यी )

6 - राजकीय  भाषा   -  1- हिंदी  ,  2-  संस्कृत ( जनवरी  2010  से )

7 - राजकीय  पशु  -  कस्तूरी  हिरन

8 - राजकीय पक्षी  -  मोनाल  

9 - राजकीय  पेड़  -  बुरांश 

10 - राजकीय  पुष्प  -  ब्रह्मकमल 

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से

उत्तराखण्ड
—  राज्य  —
समय मंडल: आईएसटी (यूटीसी+५:३०)
देशFlag of India.svg भारत
ज़िला१३
'९ नवम्बर २०००
राजधानीदेहरादून
सबसे बड़ा नगरदेहरादून
राज्यपाल
मुख्यमन्त्रीहरीश रावत
विधान सभा(सीटें)एकसदनीय (७१)
जनसंख्या
• घनत्व
10116752[1] (१९वां)
• 189 /किमी2 (490 /वर्ग मील)
साक्षरता८०%
आधिकारिक भाषा(एँ)हिन्दीसंस्कृत[2]
क्षेत्रफल53,566 km² (20,682 sq mi) (१८वां)
ISO 3166-2IN-UL
आधिकारिक जालस्थलua.nic.in
उत्तराखण्ड राजचिन्ह
उत्तराखण्ड (पूर्व नाम उत्तरांचल), उत्तर भारत में स्थित एक राज्य है जिसका निर्माण ९ नवम्बर २००० को कई वर्षों के आन्दोलन के पश्चात[3] भारत गणराज्य के सत्ताइसवें राज्यके रूप में किया गया था। सन २००० से २००६ तक यह उत्तराञ्चल के नाम से जाना जाता था। जनवरी २००७ में स्थानीय लोगों की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए राज्य का आधिकारिक नाम बदलकर उत्तराखण्ड कर दिया गया।[4] राज्य की सीमाएँ उत्तर मेंतिब्बत और पूर्व में नेपाल से लगी हैं। पश्चिम में हिमाचल प्रदेश और दक्षिण में उत्तर प्रदेशइसकी सीमा से लगे राज्य हैं। सन २००० में अपने गठन से पूर्व यह उत्तर प्रदेश का एक भाग था। पारम्परिक हिन्दू ग्रन्थों और प्राचीन साहित्य में इस क्षेत्र का उल्लेख उत्तराखण्ड के रूप में किया गया है। हिन्दी और संस्कृत में उत्तराखण्ड का अर्थ उत्तरी क्षेत्र या भाग होता है। राज्य में हिन्दू धर्म की पवित्रतम और भारत की सबसे बड़ी नदियों गंगा और यमुना के उद्गम स्थल क्रमशः गंगोत्री और यमुनोत्री तथा इनके तटों पर बसे वैदिक संस्कृति के कई महत्त्वपूर्ण तीर्थस्थान हैं।
देहरादून, उत्तराखण्ड की अन्तरिम राजधानी होने के साथ इस राज्य का सबसे बड़ा नगर है।गैरसैण नामक एक छोटे से कस्बे को इसकी भौगोलिक स्थिति को देखते हुए भविष्य की राजधानी के रूप में प्रस्तावित किया गया है किन्तु विवादों और संसाधनों के अभाव के चलते अभी भी देहरादून अस्थाई राजधानी बना हुआ है।[5][6] राज्य का उच्च न्यायालय नैनीताल में है।
राज्य सरकार ने हाल ही में हस्तशिल्प और हथकरघा उद्योगों को बढ़ावा देने के लिये कुछ पहल की हैं। साथ ही बढ़ते पर्यटन व्यापार तथा उच्च तकनीकी वाले उद्योगों को प्रोत्साहन देने के लिए आकर्षक कर योजनायें प्रस्तुत की हैं। राज्य में कुछ विवादास्पद किन्तु वृहत बाँध परियोजनाएँ भी हैं जिनकी पूरे देश में कई बार आलोचनाएँ भी की जाती रही हैं, जिनमें विशेष है भागीरथी-भीलांगना नदियों पर बनने वाली टिहरी बाँध परियोजना। इस परियोजना की कल्पना १९५३ मे की गई थी और यह अन्ततः २००७ में बनकर तैयार हुआ। उत्तराखण्ड,चिपको आन्दोलन के जन्मस्थान के नाम से भी जाना जाता है।[7]

इतिहास

स्कन्द पुराण में हिमालय को पाँच भौगोलिक क्षेत्रों में विभक्त किया गया है:-
खण्डाः पञ्च हिमालयस्य कथिताः नैपालकूमाँचंलौ।
केदारोऽथ जालन्धरोऽथ रूचिर काश्मीर संज्ञोऽन्तिमः॥
अर्थात हिमालय क्षेत्र में नेपाल, कुर्मांचल (कुमाऊँ), केदारखण्ड (गढ़वाल), जालन्धर (हिमाचल प्रदेश) और सुरम्य कश्मीर पाँच खण्ड है।[8]
संत नारायण ने शीर्ष पर गिरती गंगा का कार्टून चित्र
पौराणिक ग्रन्थों में कुर्मांचल क्षेत्र मानसखण्ड के नाम से प्रसिद्व था। पौराणिक ग्रन्थों में उत्तरी हिमालय में सिद्ध गन्धर्वयक्षकिन्नर जातियों की सृष्टि और इस सृष्टि का राजा कुबेर बताया गया हैं। कुबेर की राजधानी अलकापुरी (बद्रीनाथ से ऊपर) बताई जाती है। पुराणों के अनुसार राजा कुबेर के राज्य में आश्रम में ऋषि-मुनि तप व साधना करते थे। अंग्रेज़ इतिहासकारों के अनुसार हुण, सकास, नाग, खश आदि जातियाँ भी हिमालय क्षेत्र में निवास करती थी। पौराणिक ग्रन्थों में केदार खण्ड व मानस खण्ड के नाम से इस क्षेत्र का व्यापक उल्लेख है। इस क्षेत्र को देव-भूमि व तपोभूमि माना गया है।
मानस खण्ड का कुर्मांचल व कुमाऊँ नाम चन्द राजाओं के शासन काल में प्रचलित हुआ। कुर्मांचल पर चन्द राजाओं का शासन कत्यूरियों के बाद प्रारम्भ होकर सन १७९० तक रहा। सन १७९० में नेपाल की गोरखा सेना ने कुमाऊँ पर आक्रमण कर कुमाऊँ राज्य को अपने आधीन कर लिया। गोरखाओं का कुमाऊँ पर सन १७९० से १८१५ तक शासन रहा। सन १८१५ में अंग्रेंजो से अन्तिम बार परास्त होने के उपरान्त गोरखा सेना नेपाल वापस चली गई किन्तु अंग्रेजों ने कुमाऊँ का शासन चन्द राजाओं को न देकर ईस्ट इण्डिया कम्पनी के अधीन कर दिया। इस प्रकार कुमाऊँ पर अंग्रेजो का शासन १८१५ से आरम्भ हुआ।

संयुक्त प्रांत का भाग उत्तराखण्ड, १९०३
ऐतिहासिक विवरणों के अनुसार केदार खण्ड कई गढ़ों (किले) में विभक्त था। इन गढ़ों के अलग-अलग राजा थे जिनका अपना-अपना आधिपत्य क्षेत्र था। इतिहासकारों के अनुसार पँवार वंश के राजा ने इन गढ़ों को अपने अधीनकर एकीकृत गढ़वाल राज्य की स्थापना की और श्रीनगर को अपनी राजधानी बनाया। केदार खण्ड का गढ़वाल नाम तभी प्रचलित हुआ। सन १८०३ में नेपाल की गोरखा सेना ने गढ़वाल राज्य पर आक्रमण कर अपने अधीन कर लिया। यह आक्रमण लोकजन में गोरखाली के नाम से प्रसिद्ध है। महाराजा गढ़वाल ने नेपाल की गोरखा सेना के अधिपत्य से राज्य को मुक्त कराने के लिए अंग्रेजो से सहायता मांगी। अंग्रेज़ सेना ने नेपाल की गोरखा सेना को देहरादून के समीप सन १८१५ में अन्तिम रूप से परास्त कर दिया। किन्तु गढ़वाल के तत्कालीन महाराजा द्वारा युद्ध व्यय की निर्धारित धनराशि का भुगतान करने में असमर्थता व्यक्त करने के कारण अंग्रेजों ने सम्पूर्ण गढ़वाल राज्य राजा गढ़वाल को न सौंप करअलकनन्दा-मन्दाकिनी के पूर्व का भाग ईस्ट इण्डिया कम्पनी के शासन में सम्मिलित कर गढ़वाल के महाराजा को केवल टिहरी जिले (वर्तमान उत्तरकाशी सहित) का भू-भाग वापस किया। गढ़वाल के तत्कालीन महाराजा सुदर्शन शाह ने २८ दिसंबर१८१५ को[9] टिहरी नाम के स्थान पर जो भागीरथी और भिलंगना नदियों के संगम पर छोटा सा गाँव था, अपनी राजधानी स्थापित की।[10] कुछ वर्षों के उपरान्त उनके उत्तराधिकारी महाराजा नरेन्द्र शाह ने ओड़ाथली नामक स्थान पर नरेन्द्रनगर नाम से दूसरी राजधानी स्थापित की। सन १८१५ से देहरादून व पौड़ी गढ़वाल (वर्तमान चमोली जिला और रुद्रप्रयाग जिले का अगस्त्यमुनि व ऊखीमठ विकास खण्ड सहित) अंग्रेजो के अधीन व टिहरी गढ़वाल महाराजा टिहरी के अधीन हुआ।[11][12][13]
भारतीय गणतन्त्र में टिहरी राज्य का विलय अगस्त १९४९ में हुआ और टिहरी को तत्कालीन संयुक्त प्रान्त (उ.प्र.) का एक जिला घोषित किया गया।१९६२ के भारत-चीन युद्ध की पृष्ठ भूमि में सीमान्त क्षेत्रों के विकास की दृष्टि से सन १९६० में तीन सीमान्त जिले उत्तरकाशीचमोली व पिथौरागढ़का गठन किया गया। एक नए राज्य के रुप में उत्तर प्रदेश के पुनर्गठन के फलस्वरुप (उत्तर प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम, २०००) उत्तराखण्ड की स्थापना ९ नवंबर २००० को हुई। इसलिए इस दिन को उत्तराखण्ड में स्थापना दिवस के रूप में मनाया जाता है।
सन १९६९ तक देहरादून को छोड़कर उत्तराखण्ड के सभी जिले कुमाऊँ मण्डल के अधीन थे। सन १९६९ में गढ़वाल मण्डल की स्थापना की गई जिसका मुख्यालय पौड़ी बनाया गया। सन १९७५ में देहरादून जिले को जो मेरठ प्रमण्डल में सम्मिलित था, गढ़वाल मण्डल में सम्मिलित कर लिया गया। इससे गढवाल मण्डल में जिलों की संख्या पाँच हो गई। कुमाऊँ मण्डल में नैनीतालअल्मोड़ापिथौरागढ़, तीन जिले सम्मिलित थे। सन १९९४ मेंउधमसिंह नगर और सन १९९७ में रुद्रप्रयागचम्पावत व बागेश्वर जिलों का गठन होने पर उत्तराखण्ड राज्य गठन से पूर्व गढ़वाल और कुमाऊँ मण्डलों में छः-छः जिले सम्मिलित थे। उत्तराखण्ड राज्य में हरिद्वार जनपद के सम्मिलित किये जाने के पश्चात गढ़वाल मण्डल में सात और कुमाऊँ मण्डल में छः जिले सम्मिलित हैं। १ जनवरी २००७ से राज्य का नाम "उत्तराञ्चल" से बदलकर "उत्तराखण्ड" कर दिया गया है।

भूगोल


नन्दा देवी पर्वत, भारत की दूसरी सबसे ऊँची चोटी
उत्तराखण्ड का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल २८° ४३’ उ. से ३१°२७’ उ. और रेखांश ७७°३४’ पू से ८१°०२’ पू के बीच में ५३,४८३ वर्ग किमी है, जिसमें से ४३,०३५ कि.मी. पर्वतीय है और ७,४४८ कि.मी. मैदानी है, तथा ३४,६५१ कि.मी. भूभाग वनाच्छादित है।[14] राज्य का अधिकांश उत्तरी भाग वृहद्तर हिमालय श्रृंखला का भाग है, जो ऊँची हिमालयी चोटियों और हिमनदियों से ढका हुआ है, जबकि निम्न तलहटियाँ सघन वनों से ढकी हुई हैं जिनका पहले अंग्रेज़ लकड़ी व्यापारियों और स्वतन्त्रता के बाद वन अनुबन्धकों द्वारा दोहन किया गया। हाल ही के वनीकरण के प्रयासों के कारण स्थिति प्रत्यावर्तन करने में सफलता मिली है। हिमालय के विशिष्ठ पारिस्थितिक तन्त्र बड़ी संख्या में पशुओं (जैसे भड़लहिम तेंदुआतेंदुआ और बाघ), पौंधो और दुर्लभ जड़ी-बूटियों का घर है। भारत की दो सबसे महत्वपूर्ण नदियाँ गंगा और यमुना इसी राज्य में जन्म लेतीं हैं और मैदानी क्षेत्रों तक पहुँचते-२ मार्ग में बहुत से तालाबों, झीलों, हिमनदियों की पिघली बर्फ से जल ग्रहण करती हैं।
उत्तराखण्ड, हिमालय श्रृंखला की दक्षिणी ढलान पर स्थित है और यहाँ मौसम और वनस्पति में ऊँचाई के साथ-२ बहुत परिवर्तन होता है, जहाँ सबसे ऊँचाई पर हिमनद से लेकर निचले स्थानों परउपोष्णकटिबंधीय वन हैं। सबसे ऊँचे उठे स्थल हिम और पत्थरों से ढके हुए हैं। उनसे नीचे, ५,००० से ३,००० मीटर तक घासभूमि और झाड़ीभूमि है। समशीतोष्ण शंकुधारी वन, पश्चिम हिमालयी उपअल्पाइन शंकुधर वन, वृक्षरेखा से कुछ नीचे उगते हैं। ३,००० से २,६०० मीटर की ऊँचाई पर समशीतोष्ण पश्चिम हिमालयी चौड़ी पत्तियों वाले वन हैं जो २,६०० से १,५०० मीटर की उँचाई पर हैं। १,५०० मीटर से नीचेहिमालयी उपोष्णकटिबंधीय पाइन वन हैं। उचले गंगा के मैदानों में नम पतझड़ी वन हैं और सुखाने वालेतराई-दुआर सवाना और घासभूमि उत्तर प्रदेश से लगती हुई निचली भूमि को ढके हुए है। इसे स्थानीय क्षेत्रों में भाभर के नाम से जाना जाता है। निचली भूमि के अधिकांश भाग को खेती के लिए साफ़ कर दिया गया है।
भारत के निम्नलिखित राष्ट्रीय उद्यान इस राज्य में हैं, जैसे जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान (भारत का सबसे पुराना राष्ट्रीय उद्यान) रामनगरनैनीताल जिले में, फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान और नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यानचमोली जिले में हैं और दोनो मिलकर यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल हैं, राजाजी राष्ट्रीय अभ्यारण्य हरिद्वार जिले में और गोविंद पशु विहार और गंगोत्री राष्ट्रीय उद्यान उत्तरकाशी जिले में हैं।

उत्तराखण्ड की नदियाँ


ऋषिकेश के निकट हिमालय क्षेत्र
इस प्रदेश की नदियाँ भारतीय संस्कृति में सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं। उत्तराखण्ड अनेक नदियों का उद्गम स्थल है। यहाँ की नदियाँ सिंचाई व जल विद्युत उत्पादन का प्रमुख संसाधन है। इन नदियों के किनारे अनेक धार्मिक व सांस्कृतिक केन्द्र स्थापित हैं। हिन्दुओं की पवित्र नदी गंगा का उद्गम स्थल मुख्य हिमालय की दक्षिणी श्रेणियाँ हैं। गंगा का प्रारम्भ अलकनन्दा व भागीरथी नदियों से होता है। अलकनन्दा की सहायक नदी धौली, विष्णु गंगा तथा मंदाकिनी है। गंगा नदी, भागीरथी के रुप में गौमुखस्थान से २५ कि॰मी॰ लम्बे गंगोत्री हिमनद से निकलती है। भागीरथी व अलकनन्दा देव प्रयाग संगम करती है जिसके पश्चात वह गंगा के रुप में पहचानी जाती है। यमुना नदी का उद्गम क्षेत्र बन्दरपूँछ के पश्चिमी यमनोत्री हिमनद से है। इस नदी में होन्स, गिरी व आसन मुख्य सहायक हैं। राम गंगा का उद्गम स्थल तकलाकोट के उत्तर पश्चिम में माकचा चुंग हिमनद में मिल जाती है। सोंग नदी देहरादून के दक्षिण पूर्वी भाग में बहती हुई वीरभद्र के पास गंगा नदी में मिल जाती है। इनके अलावा राज्य में काली, रामगंगाकोसीगोमतीटोंसधौली गंगा, गौरीगंगा, पिंडर नयार (पूर्व) पिंडर नयार (पश्चिम) आदि प्रमुख नदियाँ हैं।[10]

हिमशिखर


हिमालयी श्रृंखला का उत्तराखण्डी शिखर
राज्य के प्रमुख हिमशिखरों में गङ्गोत्री (६६१४ मी.), दूनगिरि (७०६६), बन्दरपूँछ (६३१५), केदारनाथ(६४९०), चौखम्बा (७१३८), कामेट (७७५६), सतोपन्थ (७०७५), नीलकण्ठ (५६९६), नन्दा देवी (७८१८), गोरी पर्वत (६२५०), हाथी पर्वत (६७२७), नंदा धुंटी (६३०९), नन्दा कोट (६८६१) देव वन (६८५३), माना(७२७३), मृगथनी (६८५५), पंचाचूली (६९०५), गुनी (६१७९), यूंगटागट (६९४५) हैं।[10]

हिमनद

राज्य के प्रमुख हिमनदों में गंगोत्रीयमुनोत्री, पिण्डर, खतलिगं, मिलम, जौलिंकांग, सुन्दर ढूंगा इत्यादि आते हैं।[10]

झीलें

राज्य के प्रमुख तालों व झीलों में गौरीकुण्ड, रूपकुण्ड, नन्दीकुण्ड, डूयोढ़ी ताल, जराल ताल, शहस्त्रा ताल, मासर ताल, नैनीतालभीमताल, सात ताल,नौकुचिया ताल, सूखा ताल, श्यामला ताल, सुरपा ताल, गरूड़ी ताल, हरीश ताल, लोखम ताल, पार्वती ताल, तड़ाग ताल (कुमाऊँ क्षेत्र) इत्यादि आते हैं।[10]

दर्रे

उत्तराचंल के प्रमुख दर्रों में बरास- ५३६५ मी., (उत्तरकाशी), माना - ६६०८ मी.(चमोली), नोती-५३००मी. (चमोली), बोल्छाधुरा- ५३५३मी., (पिथौरागड़), कुरंगी-वुरंगी-५५६४ मी.(पिथौरागड़), लोवेपुरा-५५६४ मी. (पिथौरागड़), लमप्याधुरा-५५५३ मी. (पिथौरागढ़), लिपुलेश-५१२९ मी. (पिथौरागड़), उंटाबुरा, थांगला, ट्रेलपास, मलारीपास, रालमपास, सोग चोग ला पुलिग ला, तुनजुनला, मरहीला, चिरीचुन दर्रा आते हैं।[10]

मौसम

उत्तराखण्ड का मौसम दो भागों में विभाजित किया जा सकता है: पर्वतीय और कम पर्वतीय या समतलीय। उत्तर और उत्तरपूर्व में मौसम हिमालयी उच्च भूमियों का प्रतीकात्मक है, जहाँ पर मॉनसून का वर्ष पर बहुत प्रभाव है। राज्य में वार्षिक औसत वर्षा वर्ष २००८ के आंकड़ों के अनुसार १६०६ मि.मी. हुई थी। अधिकतम तापमान पंतनगर में ४०.२ डिग्री से. (२००८) अंकित एवं न्यूनतम तापमान -५.४ डिग्री से. मुक्तेश्वर में अंकित है।[14]
यह भी देखें: उत्तराखण्ड के मौसम की जानकारी

सरकार और राजनीति

उत्तराखण्ड सरकार की वर्तमान राज्यपाल है [श्री अजीज कुरैशी] एवं मुख्यमन्त्री हैं हरीश सिंह रावत। उन्हें १० सितम्बर२०११ को डॉ॰ रमेश पोखरियाल को हटाकर नया मुख्यमन्त्री बनाया गया था।[15] राज्य में अन्तिम चुनाव २१ फ़रवरी२००७ को हुए थे। उन चुनावों में भारतीय जनता पार्टी७०-सदस्यीय उत्तराखण्ड विधानसभा में ३४ सीटों से साथ सबसे बड़े दल के रूप में उभरी थी। बहुमत से एक सीट की कमी को पूरा करने के लिए भाजपा को उत्तराखण्ड क्रान्ति दल और तीन निर्दलियों का समर्थन लेना पड़ा। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस आधिकारिक विपक्षी दल है, जिसके पास २१ सीटे हैं।

मुख्यमन्त्री

राज्य की स्थापना से अब तक यहाँ छह मुख्यमन्त्री हुए है, इनमें से विजय बहुगुणा इस बार बार मुख्यमन्त्री नियुक्त हुए हैं:

राज्यपाल

राज्य स्थापना से लेकर अब तक यहाँ पांच राज्यपाल हुए है:

मण्डल और जिले

उत्तराखण्ड में १३ जिले हैं जो दो मण्डलों में समूहित हैं: कुमाऊँ मण्डल और गढ़वाल मण्डल
कुमाऊँ मण्डल के छः जिले हैं:
  • अल्मोड़ा जिला
  • उधम सिंह नगर जिला
  • चम्पावत जिला
  • नैनीताल जिला
  • पिथौरागढ़ जिला
  • बागेश्वर जिला
गढ़वाल मण्डल के सात जिले हैं[16]:

जनसांख्यिकी

२०११ की जनगणना के अनुसार, उत्तराखण्ड की जनसंख्या १,०१,१६,७५२ है[18] २००१ की जनगणना के अनुसार, उत्तराखण्ड की जनसंख्या ८४,८९,३४९ थी, जिसमें ४३,२५,९२४ पुरुष और ९१,६३,८२५ स्त्रियाँ थीं। इसमें सर्वाधिक जनसंख्या राजधानी देहरादून की ५,३०,२६३ है।[19] २०११ की जनगणना तक जनसंख्या का १ करोड़ तक हो जाने का अनुमान है। मैदानी क्षेत्रों के जिले पर्वतीय जिलों की अपेक्षा अधिक जनसंख्या घनत्व वाले हैं। राज्य के मात्र चार सर्वाधिक जनसंख्या वाले जिलों में राज्य की आधे से अधिक जनसंख्या निवास करती हैं। जिलों में जनसंख्या का आकार २ लाख से लेकर अधिकतम १४ लाख तक है। राज्य की दशकवार वृद्धि दर १९९१-२००१ में १९.२ प्रतिशत रही। उत्तराखण्ड के मूल निवासियों को कुमाऊँनी या गढ़वाली कहा जाता है जो प्रदेश के दो मण्डलों कुमाऊँ और गढ़वाल में रहते हैं। एक अन्य श्रेणी हैं गुज्जर, जो एक प्रकार के चरवाहे हैं और दक्षिण-पश्चिमी तराई क्षेत्र में रहते हैं।
मध्य पहाड़ी की दो बोलियाँ कुमाऊँनी और गढ़वाली, क्रमशः कुमाऊँ और गढ़वाल में बोली जाती हैं। जौनसारी और भोटिया दो अन्य बोलियाँ, जनजाति समुदायों द्वारा क्रमशः पश्चिम और उत्तर में बोली जाती हैं। लेकिन हिन्दी पूरे प्रदेश में बोली और समझी जाती है और नगरीय जनसंख्या अधिकतर हिन्दी ही बोलती है।
उत्तराखण्ड में धार्मिक समूह
धार्मिक समूहप्रतिशत[20]
हिन्दू
  
85.00%
मुसलमान
  
11.92%
सिख
  
2.49%
ईसाई
  
0.32%
बौद्ध
  
0.15%
जैन
  
0.11%
अन्य
0.01%
शेष भारत के समान ही उत्तराखण्ड में हिन्दू बहुमत में हैं और कुल जनसंख्या का ८५% हैं, इसके बाद मुसलमान १२%, सिख २.५% और अन्य धर्मावलम्बी ०.५% हैं। यहाँ लिंगानुपात प्रति १००० पुरुषों पर ९६४ और साक्षरता दर ७२.२८%[21] है। राज्य के बड़े नगर हैं देहरादून(५,३०,२६३), हरिद्वार (२,२०,७६७), हल्द्वानी (१,५८,८९६), रुड़की (१,१५,२७८) और रुद्रपुर(८८,७२०)। राज्य सरकार द्वारा १५,६२० ग्रामों और ८१ नगरीय क्षेत्रों की पहचान की गई है।
कुमाऊँ और गढ़वाल के इतिहासकारों का कहना है की आरम्भ में यहाँ केवल तीन जातियाँ थी राजपूतब्राह्मण और शिल्पकार। राजपूतों का मुख्य व्यवसाय ज़मीदारी और कानून-व्यस्था बनाए रखना था। ब्राह्मणों का मुख्य व्यवसाय था मन्दिरों और धार्मिक अवसरों पर धार्मिक अनुष्ठानों को कराना। शिल्प्कार मुख्यतः राजपूतों के लिए काम किया करते थे और हथशिल्पी में दक्ष थे। राजपूतों द्वारा दो उपनामों रावत और नेगी का उपयोग किया जाता है।

प्रमुख नगर

प्रमुख नगर और जनसंख्या

#नगरजिलाजनसंख्या#नगरजिलाजनसंख्या
देहरादूनदेहरादून जिला४,४७,८०८१२अल्मोड़ाअल्मोड़ा जिला३०,६१३
हरिद्वारहरिद्वार जिला१,७५,०१०१३किच्छाउधमसिंहनगर जिला३०,५१७
हल्द्वानीनैनीताल जिला१,२९,१४०१४मसूरीदेहरादून जिला२६,०६९
रुड़कीहरिद्वार जिला९७,०६४१५कोटद्वारपौड़ी जिला२५,४००
काशीपुरउधमसिंहनगर जिला९२,९७८१६पौड़ीपौड़ी जिला२४,७४२
रुद्रपुरउधमसिंहनगर जिला८८,७२०१७श्रीनगरपौड़ी जिला१९,८६१
ऋषिकेशदेहरादून जिला५९,६७११८गोपेश्वरचमोली जिला१९,८५५
रामनगरनैनीताल जिला४७,०९९१९रानीखेतअल्मोड़ा जिला१९,०४९
पिथौरागढ़पिथौरागढ़ जिला४१,१५७२०खटीमाउधमसिंहनगर जिला१४,३७८
१०जसपुरउधमसिंहनगर जिला३९,०४८२१जोशीमठचमोली जिला१३,२०२
११नैनीतालनैनीताल जिला३८,५५९२२बागेश्वरबागेश्वर जिला७,८०३
जनसंख्या २००१ की जनगणना के आधार पर[22]
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अर्थव्यवस्था

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उत्तराखण्ड का सकल घरेलू उत्पाद वर्ष २००४ के लिए वर्तमान मूल्यों के आधार पर अनुमानित २८०.३२ अरब रुपए (६ अरब डॉलर) था। उत्तर प्रदेश से अलग होकर बना यह राज्य, पुराने उत्तर प्रदेश के कुल उत्पादन का ८% उत्पन्न करता है। २००३ की औद्योगिक नीति के कारण, जिसमें यहाँ निवेश करने वाले निवेशकों को कर राहत दी गई है, यहाँ पूँजी निवेश में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। सिडकुल यानि स्टेट इन्फ़्रास्ट्रक्चर एण्ड इण्डस्ट्रियल डिवेलपमण्ट कार्पोरेशन ऑफ उत्तराखण्ड लि. ने उत्तराखण्ड राज्य के औद्योगिक विकास के लिये राज्य के दक्षिणी छोर पर सात औद्योगिक भूसंपत्तियों की स्थापना की है[23], जबकि ऊचले स्थानों पर दर्जनों पनबिजली बाँधों का निर्माण चल रहा है। फिर भी, पहाड़ी क्षेत्रों का विकास अभी भी एक चुनौती बना हुआ है क्योंकि लोगों का पहाड़ी क्षेत्रों से मैदानी क्षेत्रों की ओर पलायन जारी है।
उत्तराखण्ड में चूना पत्थर, राक फास्फेट, डोलोमाइट, मैग्नेसाइट, तांबा, ग्रेफाइट, जिप्सम आदि के भण्डार हैं। राज्य में ४१,२१६ लघु औद्योगिक इकाइया स्थापित हैं, जिनमें लगभग ३०५.५८ करोड़ की परिसंपत्ति का निवेश हुआ है और ६३,५९९ लोगों को रोजगार प्राप्त है। इसके अतिरिक्त १९१ भारी उद्योग स्थापित हैं, जिनमें २,६९४.६६ करोड़ रुपयों का निवेश हुआ है। १,८०२ उद्योगों में ५ लाख लोगों को कार्य मिला हुआ है। वर्ष २००३ में एक नयी औद्योगिक नीति बनायी गई जिसके अन्तर्गत्त निवेशकों को कर में राहत दी गई थी, जिसके कारण राज्य में पूंजी निवेश की एक लहर दौड़ गयी।
राज्य की अर्थ-व्यवस्था मुख्यतः कृषि और संबंधित उद्योगों पर आधारित है। उत्तराखण्ड की लगभग ९०% जनसंख्या कृषि पर निर्भर है। राज्य में कुल खेती योग्य क्षेत्र ७,८४,११७ हेक्टेयर (७,८४१ किमी²) है। इसके अलावा राज्य में बहती नदियों के बाहुल्य के कारण पनविद्युत परियोजनाओं का भी अच्छा योगदान है। राज्य में बहुत सी पनविद्युत परियोजनाएं हैं जिनक राज्य के लगभग कुल ५,९१,४१८ हेक्टेयर कृषि भूमि में सिंचाई में भी योगदान है। राज्य में पनबिजली उत्पादन की भरपूर क्षमता है। यमुना, भागीरथी, भीलांगना, अलकनन्दा,मन्दाकिनीसरयू, गौरी, कोसी और काली नदियों पर अनेक पनबिजली संयंत्र लगे हुए हैं, जिनसे बिजली का उत्पादन हो रहा है। राज्य के १५,६६७ गांवों में से १४,४४७ (लगभग ९२.२२%) गांवों में बिजली है। इसके अलावा उद्योग का एक बड़ा भाग वन संपदा पर आधारित हैं। राज्य में कुल ५४,०४७ हस्तशिल्प उद्योग क्रियाशील हैं।[24]

परिवहन

उत्तराखण्ड रेल, वायु और सड़क मार्गों से अच्छे से जुड़ा हुआ है। उत्तराखण्ड में पक्की सडकों की कुल लंबाई २१,४९० किलोमीटर है। लोक निर्माण विभाग द्वारा निर्मित सड़कों की लंबाई १७,७७२ कि॰मी॰ और स्थानीय निकायों द्वारा बनाई गई सड़कों की लंबाई ३,९२५ कि॰मी॰ हैं।
जौली ग्रांट (देहरादून) और पंतनगर (ऊधमसिंह नगर) में हवाई पट्टियां हैं। नैनी-सैनी (पिथौरागढ़), गौचर (चमोली) और चिनयालिसौर (उत्तरकाशी) में हवाई पट्टियों को बनाने का कार्य निर्माणाधीन है। 'पवनहंस लि.' ने 'रूद्र प्रयाग' से 'केदारनाथ' तक तीर्थ यात्रियों के लिए हेलीकॉप्टर की सेवा आरम्भ की है।

हवाई अड्डे

राज्य के कुछ हवाई क्षेत्र हैं:
  • जॉलीग्रांट हवाई अड्डा (देहरादून): जॉलीग्रांट हवाई अड्डा, देहरादून हवाई अड्डे के नाम से भी जाना जाता है। यह देहरादून से २५ किमी की दूरी पर पूर्वी दिशा में हिमालय की तलहटियों में बसा हुआ है। बड़े विमानों को उतारने के लिए इसका हाल ही में विस्तार किया गया है। पहले यहाँ केवल छोटे विमान ही उतर सकते थे लेकिन अब एयरबस ए३२० और बोइंग ७३७ भी यहाँ उतर सकते हैं।[25]
  • चकराता वायुसेना तलः चकराता वायुसेना तल चकराता में स्थित है, जो देहरादून जिले का एक छावनी कस्बा है। यह टोंस और यमुना नदियों के मध्य, समुद्र तल से १,६५० से १,९५० मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।
  • पंतनगर हवाई अड्डा (नैनी सैनी, पंतनगर)
  • उत्तरकाशी
  • गोचर (चमोली)
  • अगस्त्यमुनि (हेलिपोर्ट) (रुद्रप्रयाग)
  • पिथौरागढ़

रेलवे स्टेशन


हरिद्वार रेलवे स्टेशन का प्रवेश
राज्य के रेलवे स्टेशन हैं:

बस अड्डे

राज्य के प्रमुख बस अड्डे हैं:
  • देहरादून
  • हरिद्वार
  • हल्द्वानी
  • रुड़की
  • रामनगर
  • कोटद्वार

पर्यटन

छोटा चार धाम
Kedarnathji-mandir.JPGBadrinathji temple.JPGGangotri temple.jpgYamunotri temple and ashram.jpg
केदारनाथ • बद्रीनाथ
गंगोत्री • यमुनोत्री
फुरसती, साहसिक और धार्मिक पर्यटन उत्तराखण्ड की अर्थव्यस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जैसे जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान और बाघ संरक्षण-क्षेत्र और नैनीताल, अल्मोड़ा, कसौनी, भीमताल, रानीखेत और मसूरी जैसे निकट के पहाड़ी पर्यटन स्थल जो भारत के सर्वाधिक पधारे जाने वाले पर्यटन स्थलों में हैं। पर्वतारोहियों के लिए राज्य में कई चोटियाँ हैं, जिनमें से नंदा देवी, सबसे ऊँची चोटी है और १९८२ से अबाध्य है। अन्य राष्टीय आश्चर्य हैं फूलों की घाटी, जो नंदा देवी के साथ मिलकर यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है।
उत्तराखण्ड में, जिसे "देवभूमि" भी कहा जाता है, हिन्दू धर्म के कुछ सबसे पवित्र तीर्थस्थान है और हज़ार वर्षों से भी अधिक समय से तीर्थयात्री मोक्ष और पाप शुद्धिकरण की खोज में यहाँ आ रहे हैं। गंगोत्री और यमुनोत्री, को क्रमशः गंगा और यमुना नदियों के उदग्म स्थल हैं,केदारनाथ (भगवान शिव को समर्पित) और बद्रीनाथ (भगवान विष्णु को समर्पित) के साथ मिलकर उत्तराखण्ड के छोटा चार धाम बनाते हैं, जो हिन्दू धर्म के पवित्रतम परिपथ में से एक है। हरिद्वार के निकट स्थित ऋषिकेश भारत में योग क एक प्रमुख स्थल है और जो हरिद्वार के साथ मिलकर एक पवित्र हिन्दू तीर्थ स्थल है।

हरिद्वार में संध्या आरती के समय हर की पौड़ी का एक दृश्य।
हरिद्वार में प्रति बारह वर्षों में कुम्भ मेले का आयोजन किया जाता है जिसमें देश-विदेश से आए करोड़ो श्रद्धालू भाग लेते हैं। राज्य में मंदिरों और तीर्थस्थानों की बहुतायत है, जो स्थानीय देवताओं या शिवजी या दुर्गाजी के अवतारों को समर्पित हैं और जिनका सन्दर्भ हिन्दू धर्मग्रन्थों और गाथाओं में मिलता है। इन मन्दिरों का वास्तुशिल्प स्थानीय प्रतीकात्मक है और शेष भारत से थोड़ा भिन्न है। जागेश्वर में स्थित प्राचीन मन्दिर (देवदार वृक्षों से घिरा हुआ १२४ मन्दिरों का प्राणंग) एतिहासिक रूप से अपनी वास्तुशिल्प विशिष्टता के कारण सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं। तथापि, उत्तराखण्ड केवल हिन्दुओं के लिए ही तीर्थाटन स्थल नहीं है। हिमालय की गोद में स्थित हेमकुण्ड साहिबसिखों का तीर्थ स्थल है। मिंद्रोलिंग मठ और उसके बौद्ध स्तूप से यहाँ तिब्बती बौद्ध धर्म की भी उपस्थिति है।

पर्यटन स्थल

उत्तराखण्ड में बहुत से पर्यटन स्थल है जहाँ पर भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया से पर्यटक आते हैं, जैसे नैनीताल और मसूरी। राज्य के प्रमुख पर्यटन स्थल हैं:

शिक्षा

उत्तराखण्ड के शैक्षणिक संस्थान भारत और विश्वभर में एक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। ये एशिया के सबसे कुछ सबसे पुराने अभियान्त्रिकी संस्थानों का गृहस्थान रहा है, जैसे रुड़की का भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (पूर्व रुड़की विश्वविद्यालय) और पन्तनगर का गोविन्द बल्लभ पंत कृषि एवँ प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय। इनके अलावा विशेष महत्व के अन्य संस्थानों में, देहरादून स्थित भारतीय सैन्य अकादमीइक्फ़ाई विश्वविद्यालय,भारतीय वानिकी संस्थानपौड़ी स्थित गोविन्द बल्लभ पन्त अभियान्त्रिकी महाविद्यालय और द्वाराहाट स्थित कुमाऊँ अभियान्त्रिकी महाविद्यालयभी हैं।
इन सार्वजनिक संस्थानों के अलावा उत्तराखण्ड में बहुत से निजी संस्थान भी हैं, जैसे ग्राफ़िक एरा संस्थान, देहरादून प्रौद्योगिकी संस्थान, भारतीय एयर हॉस्टेस अकादमी इत्यादि।
उत्तराखण्ड बहुत से जाने-माने दिनी और बोर्डिंग विद्यालयों का घर भी है जैसे दून विद्यालय (देहरादून) सेण्ट जोसफ़ कॉलेज, (नैनीताल), वेल्हम गर्ल्स स्कूल (देहरादून), वेलहम ब्यॉज स्कूल (देहरादून), सेण्ट थॉमस कॉलेज (देहरादून), सेण्ट जोसफ़ अकादमी (देहरादून), वुडस्टॉक स्कूल (मसूरी), बिरला विद्या निकेतन (नैनीताल), भोवाली के निकट सैनिक स्कूल घोड़ाखाल, राष्ट्रीय भारतीय सैन्य महाविद्यालय (देहरादून), द एशियन स्कूल (देहरादून), द हेरिटैज स्कूल (देहरादून), जी डी बिरला मैमोरियल स्कूल (रानीखेत), सेलाकुइ वर्ल्ड स्कूल (देहरादून), वेदारंभ मॉण्टेसरी स्कूल (देहरादून) और शेरवुड कॉलेज (नैनीताल)। बहुत से विदुषकों ने इन विद्यालयों से शिक्षा ग्रहण की जिनमें बहुत से भूतपूर्व प्रधानमन्त्री और अभिनेता इत्यादि भी हैं।
हाल ही के वर्षों में बहुत से निजी संस्थान भी यहाँ खुले हैं जिनके कारण उत्तराखण्ड तकनीकी, प्रबन्धन और अध्यापन-शिक्षा के एक प्रमुख केन्द्र के रूप में उभरा है। कुछ उल्लेखनीय संस्थान हैं देहरादून प्रौद्योगिकी संस्थान (देहरादून), अम्रपाली अभियांत्रिकी एवँ प्रौद्योगिकी संस्थान (हल्द्वानी), सरस्वती प्रबन्धन एवँ प्रौद्योगिकी संस्थान (रुद्रपुर) और पाल प्रबन्धन एवँ प्रौद्योगिकी संस्थान (हल्द्वानी)।
एतिहासिक रूप से यह माना जाता है की उत्तराखण्ड वह भूमि है जहाँ पर शास्त्रों और वेदों की रचना की गई थी और महाकाव्य, महाभारत लिखा गया था। ऋषिकेश को व्यापक रूप से विश्व की योग राजधानी माना जाता है।

विश्वविद्यालय

क्षेत्रीय भावनाओं को ध्यान में रखते हुए जो बाद में उत्तराखण्ड राज्य के रूप में परिणित हुआ, गढ़वाल और कुमाऊँ विश्वविद्यालय १९७३ में स्थापित किए गए थे। उत्तराखण्ड के सर्वाधिक प्रसिद्ध विश्वविद्यालय हैं:
नामप्रकारस्थिति
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान रुड़कीकेन्द्रीय विश्वविद्यालयरुड़की
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान २०१२ सेकेन्द्रीय विश्वविद्यालयऋषिकेश
भारतीय प्रबन्धन संस्थान २०१२ सेकेन्द्रीय विश्वविद्यालयकाशीपुर
गोविन्द बल्लभ पन्त कृषि एवँ प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालयराज्य विश्वविद्यालयपंतनगर
हेमवती नन्दन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालयकेन्द्रीय विश्वविद्यालयश्रीनगर व पौड़ी
कुमाऊँ विश्वविद्यालयराज्य विश्वविद्यालयनैनीताल और अल्मोड़ा
उत्तराखण्ड प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालयराज्य विश्वविद्यालयदेहरादून
दून विश्वविद्यालयराज्य विश्वविद्यालयदेहरादून
पेट्रोलियम और ऊर्जा शिक्षा विश्वविद्यालयनिजि विश्वविद्यालयदेहरादून
हिमगिरि नभ विश्वविद्यालयनिजि विश्वविद्यालयदेहरादून
भारतीय चार्टर्ड वित्तीय विश्लेषक संस्थान (आइसीएफ़एआइ)निजि विश्वविद्यालयदेहरादून
भारतीय वानिकी संस्थानडीम्ड विश्वविद्यालयदेहरादून
हिमालयन इंस्टीट्यूट ऑफ़ हॉस्पिटल ट्रस्टडीम्ड विश्वविद्यालयदेहरादून
ग्राफ़िक एरा विश्वविद्यालयडीम्ड विश्वविद्यालयदेहरादून
गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालयडीम्ड विश्वविद्यालयहरिद्वार
पतञ्जलि योगपीठ विश्वविद्यालयनिजि विश्वविद्यालयहरिद्वार
देव संस्कृति विश्वविद्यालयनिजि विश्वविद्यालयहरिद्वार
उत्तराखण्ड मुक्त विश्वविद्यालयराज्य विश्वविद्यालयहल्द्वानी

संस्कृति

रहन-सहन

उत्तराखण्ड एक पहाड़ी प्रदेश है। यहाँ ठण्ड बहुत होती है इसलिए यहाँ लोगों के मकान पक्के होते हैं। दीवारें पत्थरों की होती है। पुराने घरों के ऊपर से पत्थर बिछाए जाते हैं। वर्तमान में लोग सीमेण्ट का उपयोग करने लग गए है। अधिकतर घरों में रात को रोटी तथा दिन में भात (चावल) खाने का प्रचलन है। लगभग हर महीने कोई न कोई त्योहार मनाया जाता है। त्योहार के बहाने अधिकतर घरों में समय-समय पर पकवान बनते हैं। स्थानीय स्तर पर उगाई जाने वाली गहत, रैंस, भट्ट आदि दालों का प्रयोग होता है। प्राचीन समय में मण्डुवा व झुंगोरा स्थानीय मोटा अनाज होता था। अब इनका उत्पादन बहुत कम होता है। अब लोग बाजार से गेहूं व चावल खरीदते हैं। कृषि के साथ पशुपालन लगभग सभी घरों में होता है। घर में उत्पादित अनाज कुछ ही महीनों के लिए पर्याप्त होता है। कस्बों के समीप के लोग दूध का व्यवसाय भी करते हैं। पहाड़ के लोग बहुत परिश्रमी होते है। पहाड़ों को काट-काटकर सीढ़ीदार खेत बनाने का काम इनके परिश्रम को प्रदर्शित भी करता है। पहाड़ में अधिकतर श्रमिक भी पढ़े-लिखे है, चाहे कम ही पढ़े हों। इस कारण इस राज्य की साक्षरता दर भी राष्ट्रीय औसत से कहीं अधिक है।

त्योहार

शेष भारत के समान ही उत्तराखण्ड में पूरे वर्षभर उत्सव मनाए जाते हैं। भारत के प्रमुख उत्सवों जैसे दीपावलीहोलीदशहरा इत्यादि के अतिरिक्त यहाँ के कुछ स्थानीय त्योहार हैं[27]:
  • देवीधुरा मेला (चम्पावत)
  • पूर्णागिरि मेला (चम्पावत)
  • नन्दा देवी मेला (अलमोड़ा)
  • गौचर मेला (चमोली)
  • वैशाखी (उत्तरकाशी)
  • माघ मेला (उत्तरकाशी)
  • उत्तरायणी मेला (बागेश्वर)
  • विशु मेला (जौनसार बावर)
  • हरेला (कुमाऊँ)
  • गंगा दशहरा
  • नन्दा देवी राजजात यात्रा जो हर बारहवें वर्ष होती है

खानपान

इन्हें भी देखें: पहाड़ी खाना एवं भारतीय खाना
उत्तराखण्डी खानपान का अर्थ राज्य के दोनों मण्डलों, कुमाऊँ और गढ़वाल, के खानपान से है। पारम्परिक उत्तराखण्डी खानपान बहुत पौष्टिक और बनाने में सरल होता है। प्रयुक्त होने वाली सामग्री सुगमता से किसी भी स्थानीय भारतीय किराना दुकान में मिल जाती है।
यहाँ के कुछ विशिष्ट खानपान है[28]:
  • आलू टमाटर का झोल
  • चैंसू
  • झोई
  • कापिलू
  • मंण्डुए की रोटी
  • पीनालू की सब्जी
  • बथुए का पराँठा
  • बाल मिठाई
  • सिसौंण का साग
  • गौहोत की दाल

वेशभूषा

पारम्परिक रूप से उत्तराखण्ड की महिलायें घाघरा तथा आँगड़ी, तथा पुरूष चूड़ीदार पजामा व कुर्ता पहनते थे। अब इनका स्थान पेटीकोट, ब्लाउज व साड़ी ने ले लिया है। जाड़ों (सर्दियों) में ऊनी कपड़ों का उपयोग होता है। विवाह आदि शुभ कार्यो के अवसर पर कई क्षेत्रों में अभी भी सनील का घाघरा पहनने की परम्परा है। गले में गलोबन्द, चर्‌यो, जै माला, नाक में नथ, कानों में कर्णफूल, कुण्डल पहनने की परम्परा है। सिर में शीषफूल, हाथों में सोने या चाँदी के पौंजी तथा पैरों में बिछुए, पायजेब, पौंटा पहने जाते हैं। घर परिवार के समारोहों में ही आभूषण पहनने की परम्परा है। विवाहित औरत की पहचान गले में चरेऊ पहनने से होती है। विवाह इत्यादि शुभ अवसरों पर पिछौड़ा पहनने का भी यहाँ चलन आम है।[29]

लोक कलाएँ

लोक कला की दृष्टि से उत्तराखण्ड बहुत समृद्ध है। घर की सजावट में ही लोक कला सबसे पहले देखने को मिलती है। दशहरा, दीपावली, नामकरण, जनेऊ आदि शुभ अवसरों पर महिलाएँ घर में ऐंपण (अल्पना) बनाती है। इसके लिए घर, ऑंगन या सीढ़ियों को गेरू से लीपा जाता है। चावल को भिगोकर उसे पीसा जाता है। उसके लेप से आकर्षक चित्र बनाए जाते हैं। विभिन्न अवसरों पर नामकरण चौकी, सूर्य चौकी, स्नान चौकी, जन्मदिन चौकी, यज्ञोपवीत चौकी, विवाह चौकी, धूमिलअर्ध्य चौकी, वर चौकी, आचार्य चौकी, अष्टदल कमल, स्वास्तिक पीठ, विष्णु पीठ, शिव पीठ, शिव शक्ति पीठ, सरस्वती पीठ आदि परम्परागत रुप से गाँव की महिलाएँ स्वयं बनाती है। इनका कहीं प्रशिक्षण नहीं दिया जाता है। हरेले आदि पर्वों पर मिट्टी के डिकारे बनाए जाते है। ये डिकारे भगवान के प्रतीक माने जाते है। इनकी पूजा की जाती है। कुछ लोग मिट्टी की अच्छी-अच्छी मूर्तियाँ (डिकारे) बना लेते हैं। यहाँ के घरों को बनाते समय भी लोक कला प्रदर्षित होती है। पुराने समय के घरों के दरवाजों व खिड़कियों को लकड़ी की सजावट के साथ बनाया जाता रहा है। दरवाजों के चौखट पर देवी-देवताओं, हाथी, शेर, मोर आदि के चित्र नक्काशी करके बनाए जाते है। पुराने समय के बने घरों की छत पर चिड़ियों के घोंसलें बनाने के लिए भी स्थान छोड़ा जाता था। नक्काशी व चित्रकारी पारम्परिक रूप से आज भी होती है। इसमें समय काफी लगता है। वैश्वीकरण के दौर में आधुनिकता ने पुरानी कला को अलविदा कहना प्रारम्भ कर दिया। अल्मोड़ा सहित कई स्थानों में आज भी काष्ठ कला देखने को मिलती है। उत्तराखण्ड के प्राचीन मन्दिरों, नौलों में पत्थरों को तराश कर (काटकर) विभिन्न देवी-देवताओं के चित्र बनाए गए है। प्राचीन गुफाओं तथा उड्यारों में भी शैल चित्र देखने को मिलते हैं।[30]
उत्तराखण्ड की लोक धुनें भी अन्य प्रदेशों से भिन्न है। यहाँ के बाद्य यन्त्रों में नगाड़ा, ढोल, दमुआ, रणसिंग, भेरी, हुड़का, बीन, डौंरा, कुरूली, अलगाजा प्रमुख है। ढोल-दमुआ तथा बीन बाजा विशिष्ट वाद्ययन्त्र हैं जिनका प्रयोग आमतौर पर हर आयोजन में किया जाता है। यहाँ के लोक गीतों में न्योली, जोड़, झोड़ा, छपेली, बैर व फाग प्रमुख होते हैं। इन गीतों की रचना आम जनता द्वारा की जाती है। इसलिए इनका कोई एक लेखक नहीं होता है। यहां प्रचलित लोक कथाएँ भी स्थानीय परिवेश पर आधारित है। लोक कथाओं में लोक विश्वासों का चित्रण, लोक जीवन के दुःख दर्द का समावेश होता है। भारतीय साहित्य में लोक साहित्य सर्वमान्य है। लोक साहित्य मौखिक साहित्य होता है। इस प्रकार का मौखिक साहित्य उत्तराखण्ड में लोक गाथा के रूप में काफी है। प्राचीन समय में मनोरंजन के साधन नहीं थे। लोकगायक रात भर ग्रामवासियों को लोक गाथाएं सुनाते थे। इसमें मालसाई, रमैल, जागर आदि प्रचलित है। अभी गांवों में रात्रि में लगने वाले जागर में लोक गाथाएं सुनने को मिलती है। यहां के लोक साहित्य में लोकोक्तियाँ, मुहावरे तथा पहेलियाँ (आंण) आज भी प्रचलन में है। उत्तराखण्ड का छोलिया नृत्य काफी प्रसिद्ध है। इस नृत्य में नृतक लबी-लम्बी तलवारें व गेण्डे की खाल से बनी ढाल लिए युद्ध करते है। यह युद्ध नगाड़े की चोट व रणसिंह के साथ होता है। इससे लगता है यह राजाओं के ऐतिहासिक युद्ध का प्रतीक है। कुछ क्षेत्रों में छोलिया नृत्य ढोल के साथ शृंगारिक रूप से होता है। छोलिया नृत्य में पुरूष भागीदारी होती है। कुमाऊँ तथा गढ़वाल में झुमैला तथा झोड़ा नृत्य होता है। झौड़ा नृत्य में महिलाएँ व पुरूष बहुत बड़े समूह में गोल घेरे में हाथ पकड़कर गाते हुए नृत्य करते है। विभिन्न अंचलों में झोड़ें में लय व ताल में अन्तर देखने को मिलता है। नृत्यों में सर्प नृत्य, पाण्डव नृत्य, जौनसारी, चाँचरी भी प्रमुख है।[31]

उत्तराखण्डी सिनेमा


तेरी सौं २००३ में बना एक उत्तराखण्डी चलचित्रहै। यह चलचित्रउत्तराखण्ड आन्दोलन पर आधारित है।
उत्तराखण्डी सिनेमा और इसके नाट्य पूर्ववृत्त उस जागृति के परिणाम हैं जो स्वतन्त्रता के बाद आरम्भ हुई थी और जिसका उद्भव ६०, ७० और ८० के दशकों में हुआ और अन्ततः १९९० के दशक में विस्फोटक रूप से उदय हुआ। समस्त पहाड़ों और देहरादूनश्रीनगरअल्मोड़ा और नैनीताल में एक आन्दोलन का उभार हुआ जिसके सूत्रधार “कलाकार, कवि, गायक और अभिनेता थे जिन्होनें राज्य की सांस्कृतिक और कलात्मक रूपों का उपयोग राज्य के संघर्ष को बल देने के लिए किया।”
ग्रामों की लोक-संस्कृति और स्थानीय लोगों की सामाजिक-आर्थिक परेशानियों के समायोजन का निरन्तर चलचित्रों में प्रदर्शन होता रहा जिसका आरम्भ पराशर गौर के १९८३ के चलचित्र "जगवाल" से हुआ जो २००३ में "तेरी सौं" के प्रथमोप्रदर्शन (प्रीमियर) तक हुआ।[32] विशेष रूप से तेरी सौं, उत्तराखण्ड आन्दोलन के संघर्ष पर आधारित थी। इस चलचित्र में १९९४ की उस दुखदाई घटना का चित्रण किया गया है जिसने राज्य आन्दोलन की अग्नि में घी का काम किया।
वर्ष २००८ में, उत्तराखण्ड के कलात्मक समुदाय द्वारा उत्तराखण्ड सिनेमा की २५वीं वर्षगांठ मनाई गई।

उत्तराखण्ड तीव्र-तथ्य

उत्तराखण्ड के राज्य प्रतीक
स्थापना दिवस९ नवम्बर २०००उत्तराखण्ड राज्य चिह्न.jpg
राज्य पशुकस्तूरी मृगMoschustier.jpg
राज्य पक्षीमोनालLophophorus impejanus (Jardin Acclimatation).jpg
राज्य वृक्षबुरांसRhododendron-by-eiffel-public-domain-20040617.jpg
राज्य पुष्पब्रह्म कमलSaussurea pygmaea.jpg

राजनैतिक तथ्य

  • प्रशासनिक राजधानी: देहरादून
  • प्रस्तावित राजधानी: गैरसैण
  • उच्च न्यायालय: नैनीताल
  • देश में स्थिति: उत्तर भारत
  • मुख्यमन्त्री: हरीश रावत
  • राज्यपाल: के के पाल
  • मण्डल संख्या: दो (कुमाऊँ और गढ़वाल)
  • कुल जिले: तेरह
  • विधानसभा सीटें: सत्तर
  • लोकसभा सीटें: पाँच

धार्मिक तथ्य

  • उत्तराखण्ड को देवभूमि के नाम से भी जाना जाता है। इसका कारण है पौराणिक काल में इस क्षेत्र में हुए विभिन्न देवी-देवताओं द्वारा लिए अवतार। यहाँ त्रियुगी-नारायण नामक स्थान पर महादेव ने सती पार्वती से विवाह किया था।
  • मन्सार नामक स्थान पर सीता माता धरती में धरती में समाई थी। यह स्थान उत्तराखण्ड के पौडी जिले में है और यहाँ प्रतिवर्ष एक मेला भी लगता है।
  • कमलेश्वर/सिद्धेश्वर मन्दिर श्रीनगर का सर्वाधिक पूजित मन्दिर है। कहा जाता है कि जब देवता असुरों से युद्ध में परास्त होने लगे तो भगवान विष्णु को भगवान शंकर से इसी स्थान पर सुदर्शन चक्र मिला था।
  • सती अनसूइया ने उत्तराखण्ड में ही ब्रह्म, विष्णु, एवँ महेश को बालक बनाया था।
  • डोईवाला भगवान दत्तात्रेय के २ शिष्यों की निवास भूमि है। यही नहीं, भगवान राम के छोटे भाई लक्ष्मण ने भी यहीं प्रायश्चित किया था।