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Monday, October 19, 2015

answer key samuh g uttrakhand ,postcode-59,18/10/2015, उत्तराखंड समूह ग पोस्ट कोड 59 उत्तर


उत्तराखण्ड का इतिहास

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उत्तराखण्ड का इतिहास पौराणिक काल जितना पुराना है। उत्तराखण्ड का शाब्दिक अर्थ उत्तरी भाग होता है। इस नाम का उल्लेख प्रारम्भिक हिन्दू ग्रन्थों में भी मिलता है, जहाँ पर केदारखण्ड (वर्तमान गढ़वाल) और मानसखण्ड (वर्तमान कुमाऊँ) के रूप में इसका उल्लेख हुआ है। उत्तराखण्ड प्रचीन पौराणिक धब्द भी है जो हिमालय के मध्य फैलाव के लिए प्रयुक्त किया जाता था। वर्तमान में इसे "देवभूमि" भी कहा जाता है क्योंकि यहाँ पर असंख्य हिन्दू तीर्थ स्थल हैं। पौरवकुशानगुप्तकत्यूरीरायकपालचन्दपरमार और अंग्रेज़ों ने बारी-बारी से यहाँ शासन किया था।

रूपरेखा[संपादित करें]

अंग्रेज इतिहासकारों के अनुसार हुण, सकास, नाग खश आदि जातियां भी हिमालय क्षेत्र में निवास करती थी। किन्तु पौराणिक ग्रन्थों में केदार खण्ड व मानस खण्ड के नाम से इस क्षेत्र का व्यापक उल्लेख है।
इस क्षेत्र को देव-भूमि व तपोभूमि माना गया है। मानस खण्ड का कुर्मांचल व कुमाऊँ नाम चन्द राजाओं के शासन काल में प्रचलित हुआ। कुर्मांचल पर चन्द राजाओं का शासन कत्यूरियों के बाद प्रारम्भ होकर सन १७९० तक रहा। सन १७९० में नेपाल की गोरखा सेना ने कुमाऊँ पर आक्रमण कर कुमाऊँ राज्य को अपने आधीन कर दिया।
गोरखाओं का कुमाऊँ पर सन १७९० से १८१५ तक शासन रहा। सन १८१५ में अंग्रजो से अन्तिम बार परास्त होने के उपरान्त गोरखा सेना नेपाल वापिस चली गई किन्तु अंग्रजों ने कुमाऊँ का शासन चन्द राजाओं को न देकर कुमाऊं को ईस्ट इण्ड़िया कम्पनी के अधीन कर किया। इस प्रकार कुमाऊँ पर अंग्रेजो का शासन १८१५ से प्रारम्भ हुआ।
ऐतिहासिक विवरणों के अनुसार केदार खण्ड कई गढों (किले) में विभक्त था। इन गढों के अलग राजा थे और राजाओं का अपने-अपने आधिपत्य वाले क्षेत्र पर साम्राज्य था। इतिहासकारों के अनुसार पंवार वंश के राजा ने इन गढो को अपने अधीनकर एकीकृत गढ़वाल राज्य की स्थापना की और श्रीनगरको अपनी राजधानी बनाया। केदारखण्ड का गढवाल नाम तभी प्रचलित हुआ। सन १८०३ में नेपाल की गोरखा सेना ने गढ़वाल राज्य पर आक्रमण कर गढ़वाल राज्य को अपने अधीन कर लिया। महाराजा गढ़वाल ने नेपाल की गोरखा सेना के अधिपत्य से राज्य को मुक्त कराने के लिए अंग्रजो से सहायता मांगी।
अंग्रेज़ सेना ने नेपाल की गोरखा सेना को देहरादून के समीप सन १८१५ में अन्तिम रूप से परास्त कर दिया। किन्तु गढ़वाल के तत्कालीन महाराजा द्वारा युद्ध व्यय की निर्धारित धनराशि का भुगतान करने में असमर्थता व्यक्त करने के कारण अंग्रजो ने सम्पूर्ण गढवाल राज्य गढवाल को न सौप कर अलकनन्दा मन्दाकिनी के पूर्व का भाग ईस्ट इण्डिया कम्पनी के शासन में शामिल कर गढवाल के महाराजा को केवल टिहरी जिले (वर्तमान उत्तरकाशी सहित) का भू-भाग वापिस किया। गढ़वाल के तत्कालीन महाराजा सुदर्शन शाह ने २८ दिसम्बर १८१५ को टिहरी नाम के स्थान पर जो भागीरथी और मिलंगना के संगम पर छोटा सा गॉव था, अपनी राजधानी स्थापित की।
कुछ वर्षों के उपरान्त उनके उत्तराधिकारी महाराजा नरेन्द्र शाह ने ओड़ाथली नामक स्थान पर नरेन्द्र नगर नाम से दूसरी राजधानी स्थापित की। सन १८१५ से देहरादून व पौडी गढवाल (वर्तमान चमोली जिलो व रूद्र प्रयाग जिले की अगस्तमुनि व ऊखीमठ विकास खण्ड सहित) अंग्रेज़ो के अधीन व टिहरी गढ़वाल महाराजा टिहरी के अधीन हुआ।

गोरखा शासन से राज्य स्थापना तक का घटना क्रम[संपादित करें]

  • उत्तराखंड में ईस्ट इंडिया कंपनी का आगमन 1815 में हुआ। वास्तव में यहां अंग्रेजों का आगमन गोरखों के 25 वर्षीय सामन्ती सैनिक शासन का अंत भी था।
  • 1815 से 1857 तक यहां कंपनी का शासन का दौर सामान्यतः शान्त और गतिशीलता से बंचित शासन के रूप में जाना जाता है। ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकार में आने के बाद यह क्षेत्र ब्रिटिश गढवाल कहलाने लगा था। किसी प्रबल विरोध के अभाव मे अविभाजित गढवाल के राजकुमार सुदर्शनशाह को कंपनी ने आधा गढ़वाल देकर मना लिया परन्तु चंद शासन के उत्तराधिकारी यह स्थिति भी न प्राप्त कर सके। +
  • 1856-1884 तक उत्राखंड हेनरी रैमजे के शासन में रहा तथा यह युग ब्रिटिश सत्ता के शक्तिशाली होने के काल के रूप में पहचाना गया। इसी दौरान सरकार के अनुरूप समाचारों का प्रस्तुतीकरण करने के लिये 1868 में समय विनोद तथा 1871 में अल्मोड़ा अखबार की शुरूआत हुयी। 1905 मे बंगाल के विभाजन के बाद अल्मोडा के नंदा देवी नामक स्थान पर विरोध सभा हुयी। इसी वर्ष कांग्रेस के बनारस अधिवेशन में उत्तराखंड से हरगोविन्द पंत, मुकुन्दीलाल, गोविन्द बल्लभ पंत बदरी दत्त पाण्डे आदि युवक भी सम्मिलित हुये।
  • 1906 में हरिराम त्रिपाठी ने वन्देमातरम् जिसका उच्चारण ही तब देशद्रोह माना जाता था उसका कुमाऊँनी अनुवाद किया।
  • भारतीय स्वतंत्रता आंन्देालन की एक इकाइ के रुप् मे उत्तराखंड में स्वाधीनता संग्राम के दौरान 1913 के कांग्रेस अधिवेशन में उत्तराखंड के ज्यादा प्रतिनिधि सम्मिलित हुये। इसी वर्ष उत्तराखंड के अनुसूचित जातियों के उत्थान के लिये गठित टम्टा सुधारिणी सभा का रूपान्तरण एक व्यापक शिल्पकार महासभा के रूप में हुआ।
  • 1916 के सितम्बर माह में हरगोविन्द पंत गोविन्द बल्लभ पंत बदरी दत्त पाण्डे इन्द्रलाल साह मोहन सिंह दड़मवाल चन्द्र लाल साह प्रेम बल्लभ पाण्डे भोलादत पाण्डे ओर लक्ष्मीदत्त शास्त्री आदि उत्साही युवकों के द्वारा कुमाऊँ परिषद की स्थापना की गयी जिसका मुख्य उद्देश्य तत्कालीन उत्तराखंड की सामाजिक तथा आर्थिक समस्याआं का समाधान खोजना था। 1926 तक इस संगठन ने उत्तराखण्ड में स्थानीय सामान्य सुधारो की दिशा के अतिरिक्त निश्चित राजनैतिक उद्देश्य के रूप में संगठनात्मक गतिविधियां संपादित कीं। *1923 तथा 1926 के प्रान्तीय काउन्सिल के चुनाव में गोविन्द बल्लभ पंत हरगोविन्द पंत मुकुन्दी लाल तथा बदरी दत्त पाण्डे ने प्रतिपक्षियों को बुरी तरह पराजित किया। 1926 में कुमाऊँ परिषद का कांग्रेस में विलीनीकरण कर दिया गया।
  • 1926 में कुमाऊँ परिषद का कांग्रेस में विलीनीकरण कर दिया गया। 1927 में साइमन कमीशन की घोषणा के तत्काल बाद इसके विरोध में स्वर उठने लगे और जब 1928 में कमीशन देश मे पहुचा तो इसके विरोध में 29 नवम्बर 1928 को जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में 16 व्यक्तियों की एक टोली ने विरोध किया जिस पर घुडसवार पुलिस ने निर्ममता पूर्वक डंडो से प्रहार किया। जवाहरलाल नेहरू को बचाने के लिये गोविन्द बल्लभ पंत पर हुये लाठी के प्रहार के शारीरिक दुष्परिणाम स्वरूप वे बहुत दिनों तक कमर सीधी नहीं कर सके थे।
  • भारतीय गणतन्त्र में टिहरी राज्य का विलय अगस्त १९४९ में हुआ और टिहरी को तत्कालीन संयुक्त प्रान्त (उ.प्र.) का एक जिला घोषित किया गया। १९६२ के भारत-चीन युद्ध की पृष्ठ भूमि में सीमान्त क्षेत्रों के विकास की दृष्टि से सन १९६० में तीन सीमान्त जिले उत्तरकाशी, चमोली व पिथौरागढ़ का गठन किया गया।

मध्यकाल में उत्तराखण्ड[संपादित करें]

कत्युरी राजा वीर देव के पश्चात कत्युरियों के साम्राज्य का पूर्ण विभाजन हो गया तथा यह न केवल अपनी जाति के अपितु कुछ बाहरी कबीलों के भी अधीन बट गया। गढ़वाल का एक बहुत बड़ा भाग कत्युरियों के हाथों से निकल गया तथा शेष कुमाऊण्ण् क्षेत्र छह कबीलों में बँट गया। तत्पश्चात कतुरिस साम्राज्य को नेपाली राजाओं अहोकछला (११९१ ईस्वी) तथा कराछला देव (१२२३ ईस्वी) ने अपने राज्य में मिला लिया। यह दोनों आक्रमण विभिन्न कबीलों में परस्पर शत्रुता के कारण निर्णायक सावित हुए। तत्पश्चात संपूर्ण साम्राज्य ६४ अथवा कुछ मतों के अनुसार ५२ गढ़ों में विभाजित हो गया। इन सभी गढ़ों के सरदार अक्सर आपस में झगड़ते रहते थे। सोलहवी शताब्दी के प्रारंभ में कनक पाल के वंशज अजय पाल ने जो की चांदपुर गढ़ी कबीलों का सरदार था, सम्पूर्ण गढ़वाल को एक कर दिया।
पांडुकेश्वर की तांबे की प्लेटें (ताम्रपत्र) दर्शाती हैं कि इस बेराज की राजधानी कार्तिकेयपुरा नीति-माना घाटी में और आगे चलकर कात्यूर घाटी में स्थित थी। एटकिंशन ने काबुल की घाटी से इस वंशज की उत्पत्ति का पता लगाया तथा उनकों काटोरों से जोड़ा।
गैरौला और नौटियाल के अनुसार, कात्यूरी छोटी खासा जनजाति थी जो मूलतः गढ़वाल के उत्तर में जोशीमठ में रहती थी तथा बाद में कुमाऊं की कात्यूर घाटी में चली गई। कात्यूरियों ने पौरवों और तिब्बती हमलावरों के पतन के बाद अपनी ताकत बढ़ाई तथा ७ वीं शताब्दी के अन्त और ८ वीं शताब्दी के आरम्भ में वे स्वतन्त्र हो गए।

कुमाऊँ का इतिहास[संपादित करें]

प्राचीन हिन्दू ग्रन्थों में कुमाऊँ को मानसखण्ड कहा गया। अक्टूबर १८१५ में डब्ल्यू जी ट्रेल ने गढ़वाल तथा कुमाऊँ कमिश्नर का पदभार संभाला। उनके पश्चात क्रमशः बैटन, बैफेट, हैनरी, रामसे, कर्नल फिशर, काम्बेट, पॉ इस डिवीजन के कमिश्नर आये तथा उन्होंने भूमि सुधारो, निपटारो, कर, डाक व तार विभाग, जन सेहत, कानून की पालना तथा क्षेत्रीय भाषाओं के प्रसार आदि जनहित कार्यों पर अपना ध्यान केन्द्रित किया।
अंग्रेजों के शासन के समय हरिद्वार से बद्रीनाथ और केदारनाथ तथा वहां से कुमाऊँ के रामनगर क्षेत्र की तीर्थ यात्रा के लिये सड़क का निर्माण हुआ और मि. ट्रैल ने १८२७-२८ में इसका उदघाटन कर इस दुर्गम व शारीरिक कष्टों को आमंत्रित करते पथ को सुगम और आसान बनाया।
कुछ ही दशकों में गढ़वाल ने भारत में एक बहुत महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया तथा शूरवीर जातियों की धरती के रूप में अपनी पहचान बनाई। लैण्डसडाउन नामक स्थान पर गढ़वाल सैनिकों की 'गढ़वाल राइफल्स' के नाम से दो रेजीमेंटस स्थापित की गईं।
निःसंदेह आधुनिक शिक्षा तथा जागरूकता ने गढ़वालियों को भारत की मुख्यधारा में अपना योगदान देने में बहुत सहायता की। उन्होंने आजादी के संघर्ष तथा अन्य सामाजिक आंदोलनों में भाग लिया। आजादी के पश्चात १९४७ ई. में गढ़वाल उत्तर प्रदेश का एक जिला बना तथा २००१ में उत्तराखण्ड राज्य का जिला बना।

अल्मोड़ा[संपादित करें]

प्राचीन अल्मोड़ा कस्बा, अपनी स्थापना से पहले कत्यूरी राजा बैचल्देओ के अधीन था। उस राजा ने अपनी धरती का एक बड़ा भाग एक गुजराती ब्राह्मण श्री चांद तिवारी को दान दे दिया। बाद में जब बारामण्डल चांद साम्राज्य का गठन हुआ, तब कल्याण चंद द्वारा १५६८ में अल्मोड़ा कस्बे की स्थापना इस केन्द्रीय स्थान पर की गई। कल्याण चंद द्वारा।तथ्य वांछित चंद राजाओं के समय मे इसे राजपुर कहा जाता था। 'राजपुर' नाम का बहुत सी प्राचीन ताँबे की प्लेटों पर भी उल्लेख मिला है।

नैनीताल[संपादित करें]

एक पौराणिक कथा के अनिसार दक्ष प्रजापति की पुत्री उमा का विवाह शिव से हुआ था। शिव को दक्ष प्रजापति पसन्द नहीं करते थे, परन्तु यह देवताओं के आग्रह को टाल नहीं सकते थे, इसलिए उन्होंने अपनी पुत्री का विवाह न चाहते हुए भी शिव के साथ कर दिया था। एक बार दक्ष प्रजापति ने सभी देवताओं को अपने यहाँ यज्ञ में बुलाया, परन्तु अपने दामाद शिव और बेटी उमा को निमान्त्रण तक नहीं दिया। उमा हठ कर इस यज्ञ में पहुँची। जब उसने हरिद्वार स्थित कनरवन में अपने पिता के यज्ञ में सभी देवताओं का सम्मान और अपने पति और अपनी निरादर होते हुए देखा तो वह अत्यन्त दु:खी हो गयी। यज्ञ के हवनकुण्ड में यह कहते हुए कूद पड़ी कि 'मैं अगले जन्म में भी शिव को ही अपना पति बनाऊँगी।
अपने मेरा और मेरे पति का जो निरादर किया इसके प्रतिफल - स्वरुप यज्ञ के हवन - कुण्ड में स्यवं जलकर आपके यज्ञ को असफल करती हूँ।' जब शिव को यह ज्ञात हुआ कि उमा सति हो गयी, तो उनके क्रोध का पारावार न रहा। उन्होंने अपने गणों के द्वारा दक्ष प्रजापति के यज्ञ को नष्ट - भ्रष्ट कर डाला। सभी देवी - देवता शिव के इस रौद्र - रुप को देखकर सोच में पड़ गए कि शिव प्रलय न कर ड़ालें। इसलिए देवी - देवताओं ने महादेव शिव से प्रार्थना की और उनके क्रोध को शान्त किया। दक्ष प्रजापति ने भी क्षमा माँगी। शिव ने उनको भी आशीर्वाद दिया।
परन्तु, सति के जले हुए शरीर को देखकर उनका वैराग्य उमड़ पड़ा। उन्होंने सति के जले हुए शरीर को कन्धे पर डालकर आकाश - भ्रमण करना शुरु कर दिया। ऐसी स्थिति में जहाँ - जहाँ पर शरीर के अंग किरे, वहाँ - वहाँ पर शक्ति पीठ हो गए। जहाँ पर सती के नयन गिरे थे ; वहीं पर नैनादेवी के रुप में उमा अर्थात् नन्दा देवी का भव्य स्थान हो गया। आज का नैनीताल वही स्थान है, जहाँ पर उस देवी के नैन गिरे थे। नयनों की अश्रुधार ने यहाँ पर ताल का रुप ले लिया। तबसे निरन्तर यहाँ पर शिवपत्नी नन्दा (पार्वती) की पूजा नैनादेवी के रुप में होती है।

पिथौरागढ़[संपादित करें]

यहां के निकट एक गांव में मछली एवं घोंघो के जीवाश्म पाये गये हैं जिससे इंगित होता है कि पिथौरागढ़ का क्षेत्र हिमालय के निर्माण से पहले एक विशाल झील रहा होगा। हाल-फिलहाल तक पिथौरागढ़ में खास वंश का शासन रहा है, जिन्हें यहां के किले या कोटों के निर्माण का श्रेय जाता है।
पिथौरागढ़ के आसपास्द चार कोटें हैं जो भाटकोट, डूंगरकोट, उदयकोट तथा ऊंचाकोट हैं। खास वंश के बाद यहां कचूडी वंश (पाल-मल्लासारी वंश) का शासन हुआ तथा इस वंश का राजा अशोक मल्ला, बलबन का समकालीन था। इसी अवधि में राजा पिथौरा द्वारा पिथौरागढ़ स्थापित किया गया तथा इसी के नाम पर पिथौरागढ़ नाम भी पड़ा। इस वंश के तीन राजाओं ने पिथौरागढ़ से ही शासन किया तथा निकट के गांव खङकोट में उनके द्वारा निर्मित ईंटो के किले को वर्ष १५६० में पिथौरागढ़ के तत्कालीन जिलाधीश ने ध्वस्त कर दिया। वर्ष १६२२ से आगे पिथौरागढ़ पर चंद वंश का आधिपत्य रहा।
पिथौरागढ़ के इतिहास का एक अन्य विवादास्पद वर्णन है। एटकिंस के अनुसार, चंद वंश के एक सामंत पीरू गोसाई ने पिथौरागढ़ की स्थापना की।
ऐसा लगता है कि चंद वंश के राजा भारती चंद के शासनकाल (वर्ष १४३७ से १४५०) में उसके पुत्र रत्न चंद ने नेपाल के राजा दोती को परास्त कर सौर घाटी पर अधिकार कर लिया एवं वर्ष १४४९ में इसे कुमाऊँ या कुर्मांचल में मिला लिया। उसी के शासनकाल में पीरू या पृथ्वी गोसांई ने पिथौरागढ़ नाम से यहां एक किला बनाया। किले के नाम पर ही बाद में इसका नाम पिथौरागढ़ हुआ।
चंदों ने अधिकांश कुमाऊँ पर अपना अधिकार विस्तृत कर लिया जहां उन्होंने वर्ष १७९० तक शासन किया। उन्होंने कई कबीलों को परास्त किया तथा पड़ोसी राजाओं से युद्ध भी किया ताकि उनकी स्थिति सुदृढ़ हो जाय। वर्ष १७९० में, गोरखियाली कहे जाने वाले गोरखों ने कुमाऊँ पर अधिकार जमाकर चंद वंश का शासन समाप्त कर दिया।
वर्ष १८१५ में गोरखा शासकों के शोषण का अंत हो गया जब ईस्ट इंडिया कंपनी ने उन्हें परास्त कर कुमाऊँ पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया। एटकिंस के अनुसार, वर्ष १८८१ में पिथौरागढ़ की कुल जनसंख्या ५५२ थी। अंग्रेज़ों के समय में यहां एक सैनिक छावनी, एक चर्च तथा एक मिशन स्कूल था। इस क्षेत्र में क्रिश्चियन मिशनरी बहुत सक्रिय थे। वर्ष १९६० तक अंग्रजों की प्रधानता सहित पिथौरागढ़, अल्मोड़ा जिले का एक तहसील था जिसके बाद यह एक जिला बना। वर्ष १९९७ में पिथौरागढ़ के कुछ भागों को काटकर एक नया जिला चंपावत बनाया गया तथा इसकी सीमा को पुनर्निर्धारित कर दिया गया। वर्ष २००० में पिथौरागढ़ नये राज्य उत्तराखण्ड का एक भाग बन गया।

गढ़वाल का इतिहास[संपादित करें]

टिहरी गढ़वाल[संपादित करें]

टिहरी और गढ़वाल दो अलग नामों को मिलाकर इस जिले का नाम रखा गया है। जहाँ टिहरी बना है शब्‍द ‘त्रिहरी’ से, जिसका अर्थ है एक ऐसा स्‍थान जो तीन प्रकार के पाप (जो जन्‍मते है मनसा, वचना, कर्मा से) धो देता है वहीं दूसरा शब्‍द बना है ‘गढ़’ से, जिसका मतलब होता है किला।
सन्‌ ८८८ से पूर्व सारा गढ़वाल क्षेत्र छोटे छोटे ‘गढ़ों’ में विभाजित था, जिनमें अलग-अलग राजा राज्‍य करते थे जिन्‍हें ‘राणा’, ‘राय’ या ‘ठाकुर’ के नाम से जाना जाता था। ऐसा कहा जाता है कि मालवा के राजकुमार कनकपाल एक बार बद्रीनाथ जी (जो वर्तमान चमोली जिले में है) के दर्शन को गये जहाँ वो पराक्रमी राजा भानु प्रताप से मिले। राजा भानु प्रताप उनसे काफी प्रभावित हुए और अपनी इकलौती बेटी का विवाह कनकपाल से करवा दिया साथ ही अपना राज्‍य भी उन्‍हें दे दिया। धीरे-धीरे कनकपाल और उनकी आने वाली पीढ़ियाँ एक-एक कर सारे गढ़ जीत कर अपना राज्‍य बड़ाती गयीं। इस प्रकार सन्‌ १८०३ तक सारा (९१८ वर्षों में) गढ़वाल क्षेत्र इनके अधिकार में आ गया। उन्‍ही वर्षों में गोरखाओं के असफल हमले (लंगूर गढ़ी को अधिकार में लेने का प्रयास) भी होते रहे, लेकिन सन्‌ १८०३ में आखिर देहरादून की एक लड़ाई में गोरखाओं की विजय हुई जिसमें राजा प्रद्वमुन शाह मारे गये। लेकिन उनके शाहजादे (सुदर्शन शाह) जो उस समय छोटे थे वफादारों के हाथों बचा लिये गये।
धीरे-धीरे गोरखाओं का प्रभुत्‍व बढ़ता गया और इन्‍होनें लगभग १२ वर्षों तक राज किया। इनका राज्‍य कांगड़ा तक फैला हुआ था, फिर गोरखाओं को महाराजा रणजीत सिंह ने कांगड़ा से निकाल बाहर किया। और इधर सुदर्शन शाह ने इस्‍ट इंडिया कम्‍पनी की मदद से गोरखाओं से अपना राज्‍य पुनः छीन लिया।
ईस्‍ट इण्डिया कंपनी ने फिर कुमाऊँ, देहरादून और पूर्व गढ़वाल को ब्रिटिश साम्राज्य में मिला दिया और पश्‍चिम गढ़वाल राजा सुदर्शन शाह को दे दिया जिसे तब टेहरी रियासत के नाम से जाना गया। राजा सुदर्शन शाह ने अपनी राजधानी टिहरी या टेहरी नगर को बनाया, बाद में उनके उत्तराधिकारी प्रताप शाह, कीर्ति शाह और नरेन्‍द्र शाह ने इस राज्‍य की राजधानी क्रमशः प्रताप नगर, कीर्ति नगर और नरेन्‍द्र नगर स्‍थापित की। इन तीनों ने १८१५ से सन्‌ १९४९ तक राज किया। तब भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान यहाँ के लोगों ने भी बहुत बढ़चढ़ कर भाग लिया। स्वतन्त्रता के बाद, लोगों के मन में भी राजाओं के शासन से मुक्‍त होने की इच्‍छा बलवती होने लगी। महाराजा के लिये भी अब राज करना कठिन होने लगा था।
और फिर अंत में ६० वें राजा मानवेन्‍द्र शाह ने भारत के साथ एक हो जाना स्वीकर कर लिया। इस प्रकार सन्‌ १९४९ में टिहरी राज्‍य को उत्तर प्रदेश में मिलाकर इसी नाम का एक जिला बना दिया गया। बाद में २४ फ़रवरी १९६० में उत्तर प्रदेश सरकार ने इसकी एक तहसील को अलग कर उत्तरकाशी नाम का एक ओर जिला बना दिया।

पृथक राज्य आन्दोलन[संपादित करें]

मई १९३८ में तत्कालीन ब्रिटिश शासन मे गढ़वाल के श्रीनगर में आयोजित कांग्रेस के अधिवेशन में पंडित जवाहर लाल नेहरू ने इस पर्वतीय क्षेत्र के निवासियों को अपनी परिस्थितियों के अनुसार स्वयं निर्णय लेने तथा अपनी संस्कृति को समृद्ध करकने के आंदोलन का समर्थन किया। एक नए राज्य के रुप में उत्तर प्रदेश के पुनर्गठन के फलस्वरुप (उत्तर प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम, २०००) उत्तराखण्ड की स्थापना ९ नवम्बर २००० को हुई। इसलिए इस दिन को उत्तराखण्ड में स्थापना दिवस के रूप में मनाया जाता है।

बहुविकल्पीय प्रश्न उतर

1. उत्तर  प्रदेश  पुनर्गठन  विधेयक  लोकसभा  में  कब   पारित  किया  गया  ?
     (ए) 1 अगस्त, 2000
     (बी) 5 अगस्त, 2000
     (सी) 28 अगस्त, 2000
     (डी) अगस्त, 2000 30
      उत्तर: (ए)

2. उत्तराखंड  की  आय  का  मुख्य  स्रोत  है  ?
    (ए) ऊर्जा
    (बी) वन संसाधन और पर्यटन
    (सी) उद्योग
    (डी) कृषि
     उत्तर: (बी)

3. लाल  बहादुर  शास्त्री  अकादमी  कहां  स्थित  है?
    (ए) देहरादून
    (बी) मसूरी
    (सी) नैनीताल
    (डी) अल्मोड़ा
     उत्तर: (बी)

4 . कॉर्बेट  नेशनल  पार्क  उत्तराखंड  के  किस  जिले  में  स्थित  है?
     (ए) चमोली
     (बी) नैनीताल
     (सी) ऋषिकेश
     (डी) गढ़वाल
      उत्तर: (बी)

5. उत्तराखंड  में  सात  ताल  झील  कहां  स्थित  है?
     (ए) नैनीताल
     (बी) चमोली
     (सी) अल्मोड़ा
     (डी) पौड़ी
      उत्तर: (ए)

6 . निम्नलिखित  में  से  कौन  सा  दर्रा उत्तराखंड  में  है?
      (ए) माणा
      (बी) दारमा
      (सी) कुंगरी - बिंगरी 
      (डी) लिपुलेख
        उत्तर: (ए)

7.  उत्तराखंड के गठन का मुख्य कारण क्या है?
      (ए) पहाड़ी लोगों की भूमि और पहचान
      (बी) पिछड़ेपन, गरीबी, असुविधा, और प्रवास
      (सी) पहाड़ी लोगों संस्कृति का संरक्षण
      (डी) पहाड़ी लोगों के राजनीतिक  अपेक्षा 
        उत्तर: (बी)

8 . कितने   प्रकार  के  वन   उत्तराखंड  में  पाए  जाते  हैं?
       (ए) चार
       (ख) दो
       (सी)तीन 
       (डी) पाँच
        उत्तर: (ए)

9 . इनमें से कौन सा महात्मा गांधी के अनुसार मिनी स्विट्जरलैंड कहलाता है ?
      (ए) अल्मोड़ा (कौसानी)
      (बी) नैनीताल
      (सी) बद्री नाथ
      (डी) पिथौरागढ़ सिंह
        उत्तर: (ए)

10 .  उत्तराखंड  का  क्षेत्रफल  कितना   है?
         (ए) 53.483 km2
         (बी) 55,420 km2
         (सी) 50,343 km2
         (डी) 52,530 km2
          उत्तर: (ए)

11 .  ऋषिकेश तीर्थ  स्थल  किस  नदी  के  किनारे  स्थित  है?
         (ए) घाघरा
         (बी) गंगा
         (सी) शारदा
         (D) यमुना
           उत्तर: (बी)


1. कौन  राज्य  के  कुमाऊं  केशरी  के  रूप  में  जाने  जाते   है?
उत्तर:  बद्री  प्रसाद  पांडेय


2. कहाँ  खतलिंग  ग्लेशियर'  स्थित  है?
उत्तर: टिहरी  जिले  में   


3. ' थांगला  पास '  किस   जिले  में  स्थित  है?
उत्तर: उत्तरकाशी 


4.  कब  H.N.B.  गढ़वाल  विश्वविद्यालय  को  केन्द्रीय  विश्वविद्यालय  का  दर्जा  मिला ?
उत्तर: जनवरी 15, 2009 


5.  उत्तराखंड  की  सबसे  बड़ी  पनबिजली  परियोजना  कौन  सी  है?
उत्तर: टिहरी  जल  विद्युत  परियोजना 


6.  नैनीताल  जिला  कितने  जिलो  की  सीमा  से  स्पर्श  करता  है  ?
उत्तर: 04 


7.   किस   दिन  उत्तरांचल  में  'ग्रीन  दिन'  मनाया  जाता  है ?
उत्तर: 05 जुलाई


8.  उत्तरांचल  उच्च  न्यायालय  के  प्रथम  मुख्य  न्यायाधीश  है?
उत्तर:  न्यायमूर्ति  ए. ए.  देसाई


9.  उत्तरांचल  में  वन  क्षेत्र  का  प्रतिशत  क्या  है?
उत्तर: 63%


10.  कौन  राज्य  के  'गढ़  केशरी'  के  रूप  में  जाना  जाता  है?
उत्तर:  अनुसूया   प्रसाद  बहुगुणा 


11.  कितने  प्रकार  के   नदी  समूह   उत्तरांचल  में  पाये  जाते   है?
उत्तर:  03


12. क्षेत्रफल  के  अनुसार  कौन  उत्तरांचल  का  सबसे  बड़ा  जिला  है?
उत्तर: उत्तरकाशी 


13.  उत्तरांचल  में  क्षेत्रफल  के  अनुसार  सबसे  छोटा  जिला  कौन  सा  है ?
उत्तर: चंपावत 


14. इचारी   बांध  किस  नदी  में  स्थित  है?
उत्तर:  टोंस


15. कुमाऊं  परिषद  का  गठन  किया  गया  था?
उत्तर: 1926



 यहाँ  में  उत्तराखंड  के  प्रशन  प्रस्तुत  कर  रहा  हूँ  कोई  त्रुटी  हो  तो  मुझे  जरुर  अवगत  कराए ....



1. उत्तराखंड  की  कौन  सी  नदी  राठ्वाहनी  के  नाम  से  जानी  जाती  है  ?
 

उत्तर: रामगंगा
 

2.   किसे   उत्तराखंड  का  गाँधी  कहा जाता है ?
उत्तर:  इन्द्रमणि  बडोनी
 

3. किसने  शांति  कुंज  हरिद्वार  की  स्थापना  की ?
उत्तर: पं.. श्री राम शर्मा
 

4. कब  और  किसके  द्वारा  उत्तरांचल  विकास  परिषद  का  गठन  किया  गया  था ?
उत्तर: 30-31 मई,  1988  शोबन  सिंह  जीना  द्वारा
 

5. लाखा मंडल  किस  जिले  में  उपस्थित  है ?
उत्तर: देहरादून
 

6. उत्तराखंड  राज्य  का  राजकीय  पशु  कौन  है ?
 उत्तर : कस्तूरी  मृग 


7. कब   प्रसिद्ध  'गौचर '  मेले   की  शुरुआत  हुवी  थी  ?
उत्तर: 1943
 

8. कौन  सा  साधन  हवा  की  गति  को  मापने  के  लिए  प्रयोग  किया  जाता  है ?
उत्तर: एनीमोमीटर
 


9. कौन  नया  उत्तराखंड  राज्य  के  युवा  कांग्रेस  चीफ  के  रूप  में  चुना  गया  है     ? 
उत्तर: आनंद सिंह रावत (केंद्रीय मंत्री हरीश रावत के पुत्र)
 


10.  चिपको आंदोलन  का  सूत्रधार  कौन  था  ? 
उत्तर: गौरा देवी
 





1- देश के पहले नेता , जिसने उत्तराखंड  की गरीबी और पिछड़ेपन की जिम्मेदारी ली थी ?


(ए)  अटल बिहारी बाजपेयी
(बी)  लाल कृष्ण आडवाणी
(सी)  श्रीमती इंद्रा गांधी
(डी)  पं.. जवाहर लाल नेहरू
                                    उत्तर: (सी)


2- उत्तरांचल के गठन का मुख्य कारण क्या है ?

(ए) पहाड़ी लोगों की भूमि और पहाड़ी  पहचान
(बी) पिछड़ेपन, गरीबी, असुविधा, और पलायन
(सी) पहाड़ी  संस्कृति का संरक्षण
(डी) पहाड़ी लोगों के राजनीतिक परेशानीया
                                    उत्तर: (बी)

3- देश के उच्च न्यायालयो में उत्तराखंड के न्यायालय का कौन सा स्थान है  ?

(ए) 18
(बी) 19
(सी) 20
(डी) 21
                                     उत्तर: (सी)

4- हरियाली दिवस कब मनाया जाता है ?

(ए) 3 जुलाई
(बी) 5 जुलाई
(सी) 8 जुलाई
(डी) 15 जुलाई
                                      उत्तर: (बी)

5- उत्तराखंड में कितने जिले है ?

(ए) 10
(बी) 12
(सी) 13 + 4
(डी) 14
                                      उत्तर: (सी) (चार नए जिले बनाये जाने की घोषणा की गयी है )

6-  2011 की जनगणना के अनुसार उत्तरांचल की कुल आबादी है

(ए) 80,75, 123
(बी) 1,01,16,752 
(सी) 85,89,234
(डी) 82,69,234
                                    उत्तर: (बी)

7-  I.M.A. (भारतीय सैन्य अकादमी) कहाँ  स्थित है ?

(ए) देहरादून
(बी) पिथौरागढ़
(सी) ऊधम सिंह नगर
(डी) अल्मोड़ा
                                       उत्तर: (ए)

8. लाल बहादुर शास्त्री अकादमी कहां स्थित है ?

(ए) देहरादून
(बी) मसूरी
(सी) नैनीताल
(डी) अल्मोड़ा
                                       उत्तर: (बी)

9-  उत्तरांचल के किस जिले में राज्य वन सेवा  कॉलेज स्थित है ?

(ए) नैनीताल
(बी) श्री नगर
(सी) देहरादून
(डी) पौड़ी
                                      उत्तर: (सी)

10- चिपको आंदोलन किस  से संबंधित है ?

(ए) वन संरक्षण
(बी) वन्य जीवन संरक्षण
(सी) वायु  संरक्षण
(डी) जल संरक्षण
                                     उत्तर: (ए)




1 .   उत्तराखंड  के  चंडी  प्रसाद  को  किस  अंतरराष्ट्रीय  पुरस्कार  से  सम्मानित  किया  गया  है ?
 

     (ए) नोबेल पुरस्कार
     (बी) के ऑस्कर पुरस्कार
     (सी) रेमन मैगसेसे पुरस्कार
     (डी) इनमें से कोई नहीं.
     
         उत्तर: (सी)

 2 . उत्तराखंड  वह  जिला  जो  छोटा  कश्मीर  कहलता  है?

     (ए) मसूरी
     (बी) नैनीताल
     (सी) अल्मोड़ा
     (डी) पिथौरागढ़
   
     उत्तर: (डी)

3. देश  के  उच्च  न्यायालयों   में  , उत्तराखंड  उच्च  न्यायालय   कौन  सा  उच्च  न्यायालय   है  "
  

   (ए) 18
   (बी) 19
   (सी) 20
   (डी) 21
    
   उत्तर: (सी)

4 . उत्तराखंड  के अंतिम  राजा  कौन  थे  ?
    

    (ए) बरम शा
    (बी) प्रदुमन  शाह
    (सी) हर्ष देव जोशी
    (डी) मानवेंद्र शाह
 
     उत्तर: (बी)

5 . कौन  सा  निम्नलिखित  मंदिरों  में  से  एक  केदारनाथ  में  स्थित  है?
 

    (ए) विष्णु
    (बी) शिव
    (सी) ब्रह्मा
    (डी) काली
 

     उत्तर: (बी)
 

6 . उत्तराखंड  के  पहले  मुख्यमंत्री  कौन  थे ?
 

    (ए) नित्यानंद स्वामी
    (बी) सुरजीत सिंह बरनाला
    (सी) गोविंद वल्लभ पंत
    (डी) नारायण दत्त तिवारी
 
     उत्तर: (ए)

7 . उत्तरकाशी  में  विनाशकारी  भूकम्प  कब  आया  था ?
 

    (ए)1990 में
    (बी) 1991 में
    (सी) 1992 में
     (डी) 1998 में
      
       उत्तर: (बी)

8 . पिंडर  नदी  का  उद्गम  स्थान  है?
 

    (ए) मिलाम
    (बी) बद्री नाथ
    (सी) पिंडारी ग्लेशियर
    (डी) केदार नाथ
 
     उत्तर: (सी)

9 . टिफिन  टॉप  कहाँ  स्थित  है?
 

     (ए) नैनीताल
     (बी) भीमताल
     (सी) हल्द्वानी
     (डी) रानीखेत
 
     उत्तर: (ए)

10 . लैंसडाउन  क्या  है?
 

      (ए) एक पर्यटक जगह
      (बी) एक औद्योगिक क्षेत्र
      (सी) एक मनोरंजक जगह
      (डी) इनमें से कोई नहीं
 

      उत्तर: (ए)